आखिर तू है कौन ?

मत कर इन आँखों पर इतना विश्वास, ये सच छुपाती हैं।
उस स्थिर सूर्य को हर रोज़ उगाती और डुबातीं हैं।।

तू जो कर रहा है और देख रहा है, उसे कराये कोई और।
पर, हर बार बेचारा मानव फस जाता, दो नयन इशारे की ओऱ।।

मन बुद्धि और अहंकार को, जो तू समझे है अपना।
ये तो तीन कठपुतलियां हैं उसकी, जिसका यह संसार है सपना।।
तु जो देख रहा है और जो कर रहा है , वो है एक अद्भुत माया।
उस माया का अंश रूप, तू है उसकी एक छाया।।

जिसे सँवारे तो अनमोल समझ कर, है पंच तत्व में मिल जाना।
इतना गुरूर न कर प्यारे, तुझको लौट कर है घर जाना।।

“अहं ब्रह्मा अस्मि” यें शब्द नही, सच्चाई है।
जो समझ सके इसे जितना, उतनी चेतना बढ़ पायी है।।

यह बस जन्म नही एक अवसर है, मुस्कुरा कर आनंद उठा।
जब समझ जाए है जाना कहाँ, उठ बोरिया बिस्तर और कदम बढ़ा।।

Harshit Agrawal