രാവും പകലും

നാം നമ്മിൽ നിന്ന് അകലുകയാണ്
നമ്മൾ പോലും അറിയാതെ
ഓരോ നിമിഷവും നമ്മൾ രഹസ്യമായി നോക്കുകയാണ്
നമുക്ക് സംസാരിക്കാനാകുന്നില്ല,
കാരണം,
നമുക്ക് രണ്ട് പേർക്കും ഒരേ ഭാഷയാണ്.
എങ്കിലും ആ നിഖൂഢത വ്യത്യസ്തപെടുത്തു,
നമ്മളെ.
എനിക്ക് വെളിച്ചം പകരാനെത്തുന്ന നീ
എന്നിൽ നിന്ന് അകലുകയാണ്
എനിക്കും എന്റെ നിഖൂഢതക്കും ഇടയിലാണ് നീ.
എല്ലാത്തിനുമുപരി,
ഞാനീ ലോകത്ത് തിരയുന്നത് നിന്നെയാണ്.
നിഗൂഢതയിൽ നിന്ന് നിഗൂഢതയിലേക്ക്
എന്താണ് പറയേണ്ടത്?
ഞാനെന്നും നിന്നെ തിരഞ്ഞലയുന്നു
ഒരിക്കലും കണ്ടെത്താനകില്ലെന്നറിഞ്ഞിട്ടും.

Transliteration:

Raavum pakalum

Naam nammalil ninnum akalukayaan
nammal polum ariyaathe
oro nimishavum nammal rahasyamaayi nokkukayaan
namukk samsaarikkaanaakunnilla,
kaaranam
namukk rand perkkum ore bhaashayaan
enkilum aa nikhoodatha vyathyasthapeduthunnu,
nammale.
Enikk velicham pakaraanethunna nee
ennil ninnum akalukayaan
Enikkum ente nikhoodathaykkum idayilaan nee.
Ellaathinumupari,
Njaanee lokath thirayunnath ninneyaan.
Nikhoodathayil ninnum nikhoodathayilekk
endhaan parayendath?
Njaanennum ninne thiranjalayunnu
orikkalum kandethaanaakillennarinjittum

Translation:

Day and Moonlit Night

As the days drift into nights…
We drift apart from each other a little further, a little longer.
We speak the same language.. our hearts have the same rhythm.
Yet why is there a loss of words? I wish I knew.
You were my firefly. That little light in the darkest night..
Now look at me.. left alone under starless skies and hopeless nights.
The darkness doesn’t scare me.
I swear I wouldn’t back off.
I will search you in the dark..
I will look for you in the crowds..
Perhaps we will never meet…
But I will forever live in search of you..
Along those paths we once walked together

-Lansi Latheef

त्रियामा (तीसरा पहर)


निशि बैठी हुई तीसरे पहर में, उलझते जाल को सुलझा रहा हूं,
तनिक सा बुद्ध मन को मानकर, पहेली खुद को सब समझा रहा हूं।

उधड़ती है यहां से या वहां से, उर का हर तर्क अब झीना बड़ा,
कभी आकार ले कभी लुप्त हो, अनगिनत भाव मन में आ पड़ा।

विगत की वेदना फिर से जगी अन्तर गगन में,
कहकहो में छिपा ओझल रखा जिसे दूर मन में।
नेपथ्य से झांकती निष्पत्ति की आशा संजोए,
किंतु, हरबार की भांति फलित होगी रुदन में।।

न शब्दो का चयन, अधिकांशतः समकूल हो पाता,
किसी से व्यक्त करना भी, कभी-कभी भूल हो जाता।
व्यथा जो एक सी हो, पंक्तियों में बद्ध हो पाती,
किसे चित्रित करूं पहले, लेखनी रूद्ध हो जाती।

कहाँ वो शीत है, हर लेती जो मन के तपन को,
जो सर पे हाथ रखती, पोंछ देती आर्द्र नयन को।
हृदय की दाह झुलसाती है ये काया,
अभी पूरा पहर है शेष, उषा के अवतरण को।।

तमी फिर आनी है, भले दृग खोल दे दिनकर,
इसी परिचित विवशता का, विष घोलने मनपर।
लिखूं कुछ और कुछ मन में ही रहने दूं,
भला क्या प्राप्त हो, निरर्थक बोल ये बुनकर।।

Sanjeet Kumar

सामने वाली सीट पर

वो अजनबी काम के तनाव के बीच हमारी मुस्कान का कारण बन गया था, मैं नीलिमा शहर के एक सरकारी अस्पताल में नर्स के रूप में कार्यरत हूँ। और जिसकी बात कर रही हूँ वह है 6 बरस का जयंत जिसे हम प्यार से जंतु पुकारते थे। यूँ तो इस पेशे में हमारी कोशिश होती है कि किसी भी मरीज को हमसे बात करते हुए अपनेपन का एहसास हो। लेकिन जंतु से मैंने जितने अपनापन महसूस किया वो बाकियों से अलग था।

वो महज़ 6 बरस का बच्चा था और किसी गंभीर आनुवांशिक बीमारी के कारण अस्पताल में ढाई महीने से ज्यादा भर्ती रहा, जिसका इलाज जीन थेरेपी से होना था, उसकी जीन थेरेपी होने के बाद कुछ परेशानी आ रहीं थी जिस वजह से डॉक्टर ने उसको छुट्टी नहीं दी थी, जंतु अक्सर अपने दादाजी के साथ हमारे नर्सिंग रूम के सामने वाली सीट पर आकर बैठ जाता और मुझसे बतलाता था, ना जाने इतनी सारी बातें कैसे बना लेता था वो, मैं और मेरी साथी नर्सेस उसकी अटपटी बातों से खूब हँसा करती थीं।

अभी पिछले हफ्ते ही जंतु की एक और सर्जरी हुई थी, जिसके बाद से उसकी तबियत ज्यादा खराब रहने लगी अब वो सामने वाली सीट पर आकर नहीं बैठता तो मैं खुद उसे दवाई देने जाती तो कहती “जंतु जनाब आपकी सीट खाली पड़ी रहती है और हमारा आपकी बातों के बिना मन नहीं लगता।” वो मुस्करा देता और कहता “दीदी जल्दी से ठीक होकर आपको खूब परेशान करूंगा।” लेकिन जंतु वापस सामने वाली सीट पर दोबारा नहीं आया।

दरअसल डॉक्टर ने बताया जयंत की बीमारी का इलाज अब हमारे यहाँ मुमकिन नहीं है। उसके इलाज के लिए उसे सिंगापुर के एक बड़े अस्पताल में ले जाना होगा, क्यूंकि जो तकनीक जंतु के इलाज में इस्तेमाल होनी है वह वहाँ पर ही मिलेगी। तो जंतु के इलाज के ख़र्चे के लिए हमारे अस्पताल के स्टाफ़ ने चंदा इकठ्ठा करके उसके गरीब परिवार को दे दिया और आज जंतु को छुट्टी दे दी गयी। आज सामने वाली सीट खाली थी और मेरी आँखें भरी हुई। लेकिन दिल में एक सुकून था कि जंतु अब ठीक हो जाएगा।

Vikas

सामने वाली सीट पर

“जो होता है अच्छे के लिए होता है।” – मुझे हमेशा से इस वाक्य से चिढ़ रही है। यह वाक्य बेहद खूबसूरती से, इंसान की बेबसी पर पर्दा चिरा देता है। मगर इक किस्सा अनुभव करने के बाद , इस वाक्य के प्रति मेरी चिढ़ कुछ काम हो गई है।

रोज़ की तरह आज सुबह भी मैं दिल्ली मेट्रो के जंगल जैसे स्टेशन से अपने बस्ते को संभाले , कॉलेज जाने के लिए ब्लू लाइन मेट्रो पकड़ने जा रही थी परंतु आज न जाने मेरे ख्याली पुलाव कहाँ पक रहे थे , पक नहीं रहे थे, पुलाव जल ही गए थे। मुझे एहसास भी न हुआ और मै एक गलत दिशा की ट्रेन मे सवार हो गई। पूरे बीस मिनट तक मुझे ये एहसास ही न हुआ की मै एक गलत दिशा की ट्रेन मे बेठी हूाँ । मेरे साथ ऐसा शायद पहली बार हुआ। आज मुड़ के इस किस्से को याद करने पर गलत ट्रेन मे बैठे हुए ये बीस मिनट मुझे बिल्कुल फिजूल नहीं लगे , बल्कि इन बीस मिनट में जीवन के एक अनोखे पहलू से मेरा परिचय हुआ।

सामने वाली सीट पर बैठे खालीपन ने मेरे ख्याली पुलाव के कूकर मे कुछ जगह बना ली थी। हालकी उस सीट पर कोई बैठा नहीं था, परंतु उस सीट ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। ठीक उसी तरह जिस तरह गुड की डली किसी चींटी को आकर्षित किया करती है। कुछ क्षण बाद ही उस पर एक अधेड़ उम्र की महिला आकार बैठ गई। महिला कुछ जल्दी मे थी, हाथ मे मेडिकल रिपोर्ट्स लिए अपने बस्ते मे कुछ तलाश रही थी। कुछ देर बाद वो उठ खड़ी हुई और एक युवा लड़का आकर उसी सीट पर बेफिक्री से बैठ गया| कुछ देर बाद वो लड़का भी उस सीट से उठ खड़ा हुआ। अब वह सीट फिरसे अपने खालीपन के साथ किसी और यात्री की राह देख रही थी की कोई आए ओर उसका अकेलापन बांट ले।

इस सामने वाली सीट पर गतिविधियां होते देख मुझे एहसास हुआ की हमारा जीवन भी एसी ही एक लंबी सीट है जिस पर न जाने कितने लोग आकर बैठ थे फिर चले जाते हैं। जीवन की राह मे अनेक सह यात्री इसी प्रकार आते हैं, चले जाते हैं। कुछ यात्री हमारा अकेलापन साझा करते हैं तो कुछ उस खालीपन वृद्धि कर जाते हैं।

बीस लमनट बाद, मेरा ध्यान मेट्रो मे हो रही अनाउंसमेंट पर गया और मुझे एहसास हुआ की तुरंत ही इस मेट्रो ट्रेन से उतर कर सही दिशा की ट्रेन मे जाना होगा।

Priya