..और उसकी आँखे नम हो गई

यह कहानी है एक गुलाब के पौधे की जो हरी घास के बीच, उँचे-उँचे पेड़ो के बीच पला बड़ा था। बाल्यकाल में उसने मात्र धरती और जड़ों को देखा था। छोटे-छोटे कीड़ें-मकौड़ों के साथ दिन बिताने के अलावा उसे कुछ पता नहीं था। युवा काल के शुरुआती दिन सूर्य-किरणों के आँचल में बीते। चारों ओर हरियाली और खुशी थी। उसके नयनों ने दुख के साये तक को कभी देखा न था। भ्रमरों रे गुंजन तथा तितलियों के नर्तन के साथ सुखमयी जीवन चल रहा था। मात्र एक दिन घोर घटा छा गई। आसपास के पत्थर हवा में उड़ने लगे। अतिवृष्टि होने लगी, पौधे उखड़ने लगे। माली अत्यंत चिंतित हो गया। “क्या यही अंत हैं?” उसने सोचा। न पौधे उसकी सुन सकते थे, न वो पौधों की। अंततः मालीने कुछ पौधों को बचाने के लिए उन्हें अपने कमरें में रखने का निर्णय लिया। परंतु, कँटीले, कुसुम-रहित गुलाब के लिए कहाँ जगह बची थी? अतः, उसे एक श्वेत भित्ती वाले जीर्ण कक्ष में रखा गया। यह कक्ष उसके पुराने घर से अत्यंत भिन्न था। सूखी जमीन, कृत्रिम प्रकाश, एक छोटी सी खिड़की और कुछ छोटे-मोटे कंकड़। सप्ताह गया, फिर भी वह खुश ही नज़र आया। महीना गया, तथापि वह खुश ही दिख रहा था। अब वर्ष समाप्त होने वाला था। इस पूरी अवधि में उसने एक माली के अलावा किसी भी जीवंत वस्तु को न देखा था। हालाँकिं वह अभी भी माली की उपस्थिति में खुश ही दिखता, परंतु वह खुशी का मुखौटा अब ढ़िला पड़ने लगा था। वह अपने पर्ण खो चुका था और उसका पतला डंठल भूस पड़ चुका था। सारा पानी अश्रुओं में बह रहा था। वो सफ़ेद, जीर्ण दिवारें मानों हर क्षण उसे घूर रही थी। वो छोटी खिड़की बीते दिनों का गान गा रही थी। वे कंकड़ उसे अपने बचपन की याद दिलाते और वह फूट पड़ता। औऱ आधा साल बीता पर तूफ़ान के जाने का नामों-नीशान नही था। अब उसके शरीर पर इस सबका भयावह परिणाम दिख रहा था। वह झुक चुका था। जौ पौधे एक साथ थे, वे अच्छे से फल-फूल रहे थे। परंतु यह गुलाब, जिसकी उम्र अभी खिलने की थी, वह अंदर से टूट चुका था।

अकेलापन और सन्नाटे ने उसे अंदर से खा लिया था। फिर वह दिन आया जब सने पहली और अंतिम बार खिलने का प्रयत्न किया। उसके काँटे झड़ चुके थे और केवल एक कली बची था। घड़ी सुबह की था। माली पानी लेके दरवाज़े से अंदर आया और उसने खुशी और दर्द के परम संगम को प्रत्यक्ष महसूस किया। पौधे की आँखे अब सूख चुकि थी, कष्ट मिट चुके थे, पुष्प खिल चुका था और प्राण जा चुके थे। माली के हात का पानी बहके वहाँ पहुँचा जहाँ उसके अश्रु सदा रहते। माली देखता रहा, उसके पैर मानो वहीं अटक गए, उसे उस पौधे का पुराना खुश चेहरा याद आया, और उसकी आँखें नम हो गई।

Shivam Ambokar